दृढ़ इच्छा शक्ति
चाहने
से क्या कुछ नहीं मिल सकता;बसहमारे
मन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिएऔर हमें स्वयं
पर विश्वासहोना चाहिए ।हमारी यह दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास हीहमेंएक सकारात्मक
दृष्टि प्रदान करता है,जिससे प्रेरणा पाकर हमअपने जीवनपथ पर
निरंतर आगे बढ़ रहते हैं । यदिएक बार हम
अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो जाये और उसको पाने का भरसक प्रयास करें तो एक दिन
सफलता अवश्य मिलेगी । जहाँ तक बात सुख- दुःख और कठिनाइयों
की है तो यह सभी जीवन केअभिन्न अंग हैं, यहचीजें सभी के जीवन में व्याप्त हैं,
इनसे बचना मुश्किल है ।लेकिन जो व्यक्ति इन समस्याओं से लड़कर,
आगे बढ़ता है, वही एक सफल इंसान कहलाता है । इसलिएहमें
अपना ध्यान सदैव हमारे जीवन लक्ष्यों पर लगाना चाहिए और उनको प्राप्त करने की दिशा
में निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए है;क्योंकि
सफलता तो वही जो कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके मिले ।
मैं
आपको फ्रांस के एक प्रसिद्ध दार्शनिकके बारे में बताने जा रहा हूँ, जिनका जीवन अत्यंत ही संघर्षपूर्ण रहा । उनका यह संघर्ष अपने समाज
से नहीं बल्कि स्वयं से था । लेकिनअपने जीवन में उन्होंने कभी हार नहीं मानि और न
ही जीवन की विपरीत परिस्थितियों के आगे वो कभी झुके;वहजीवनपर्यंत प्रयासरत रहे । उनके कठोर परिश्रम
का ही यह परिणाम था कि आगे चलकर उनकी गणना संसार के महानतम व्यक्तियों में की जाने
लगी । उनकी संघर्षरत जीवन यात्रा आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणाश्रोत है।उनकी
कहानी को मैंने एक संक्षिप्त रूप देने का प्रयास किया है, ताकि इसको हर कोई पढ़े और
उनके जीवन से प्रेरणा पाकर, अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त
करने की दिशा में प्रयासरत हो सके ।मैंनेइस कहानी का शीर्षकदृढ़ इच्छा शक्ति
दिया है ।
वो लड़काअपनी
एक आँख से देख नहीं सकता था, लेकिन बचपन से ही उसको
पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था ।
उसने अपनी छोटी सी उम्र में ही कई पुस्तकों का अध्ययन भी कर लिया था । एक आँख ख़राब होने के कारण अध्ययन करते
समय उसकी दूसरी आँख पर जोर पड़ता था
। इस कारण आगे चलकर उसकी दूसरी आँख में दर्द की शिकायत
होने लगी ।
चिकित्सक ने उसे यह कहकर पढ़ने से मना कर दिया कि ‘यदि तुम अपनी दूसरी आँख पर
ज्यादा जोर डालोगे तो ये आँख भी ख़राब हो सकती है । लेकीन उसने चिकित्सक की बात न मानी और
पुस्तकों को पढ़ना जारी रखा ।उस
लड़के के परिवार वालों ने भी उसको बहुत समझाया कि वो पुस्तकें न पढ़े । उसने अपने परिवार वालों को यह कहकर अपनी हामी भरी कि ‘मै
इन पुस्तकों को पढ़ना तभी बंद करूंगा जब आप में से कोई इन पुस्तकों को पढ़कर मुझे
सुनाता रहेगा ।‘ उसके परिवार
वालों ने उसकी यह बात मान ली । फिर उसके घर वाले उसकी पसंद की
पुस्तकों को पढ़कर उसे सुनाने लगे ।इसी तरह अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी ।आगे चलकर उसने अपने विचारों को दूसरों की
सहायता से लिखवाना आरम्भ किया और उनको प्रकाशित करवाने लगा । इस प्रकार उसने कई प्रसिद्द पुस्तकें
लिखी जो जीवन के सकरात्मक पहलु को दर्शाती हैं ।
आगे
चलकर यही लड़का फ्रांस देश के प्रसिद्द दार्शनिक ज्याँ पॉल सार्त्रके
नाम से मशहूर हुआ ।ज्याँ पॉल सार्त्रअस्तित्ववाद के पहले विचारकों में से एक माने जाते हैं
। कई बार उन्हें अस्तित्ववाद के जन्मदाता के रूप में भी देखा जाता है । सन् 1964
में उन्हें साहित्य जगत के सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी
सम्मानित किया गया ।
अतः यदि हमारे मन में कुछ करने की दृढ़ इच्छा हो तो
जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियाँ भी हमें अपने लक्ष्य को पाने से नहीं रोक सकती । अगर ज्याँ पॉल सार्त्र
अपनी आँख की कमजोरी का बहाना बनाकर केवल एक आँख होने के गम में डूब जाते तो क्या
वे अपने जीवन में कभी आगे बढ़ पाते?
👌👌well said sir👍🌻
ReplyDeleteI am glad to read this before my exams.💛👍
Thank you. All the very best for your exam ✌️
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