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संस्कार, सफलता और शिक्षा विद्यार्थियों के जन्मसिद्ध अधिकार

विद्यार्थी ध्रुव जैसे अटल और दृढ़ संकल्पी बनकर गगन में चमकें शिक्षा जीवन को बहुमूल्य बनाती है। शिक्षा से संस्कार पाकर साधारण मनुष्य भी देवता बन जाता है। प्राचीन काल में गुरु-शिष्य की परम्परा समाज , राष्ट्र और विश्वधरा को स्वर्ग से भी सुंदर सजाने , उत्कृष्ट और महान बनाने की थी। शिक्षकों के संपूर्ण जीवन का तप और त्याग शिष्यों के उत्कर्ष के लिए होता था। शिक्षक विद्यार्थियों को प्राकृतिक वातावरण में घनें जंगलों के बीच विशाल वृक्षों के नीचे एकांत में शिक्षा प्रदान करते थे। विद्यार्थी शिक्षण काल के दौरान अपने घर का त्याग करने के साथ पूरा समय श्रेष्ठ ज्ञान को अर्जित करने में लगाते थे। गुरुकुल के संचालन की व्यवस्था गुरुओं के नेतृत्व में शिष्यों को ही करनी होती थी। गुरु शिष्यों की अनुशासनहीनता पर मारने और पीटने की बजाय शिष्यों को दण्ड स्वरूप जंगल से लकड़ी (इंधन) जुटानें और कुछ शिष्यों को आसपास के गांवों में जाकर घरों से आटा मांगकर लाते थे। जिससे गुरुकुल में सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों के भोजन की व्यवस्था होती थी। गुरुकुल के संचालन से लेकर विद्यार्थियों के रहन-सहन और विद्यार्जन की सारी व्